सोमवार, 10 फ़रवरी 2020

वो बॉलर, जिसने एक तानाशाह से पंगा लिया और अपना करियर कुर्बान कर दिया


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1999 का वर्ल्ड कप मैच. इंडिया के सामने जिम्बॉब्वे. इस मैच में एक बॉलर ने 5 गेंदों के अंदर 3 विकेट झटक कर इंडिया के मुंह से मैच छीन लिया था. बल्कि यूं कहिए हलक में हाथ डाल कर मैच निकाल लिया था. इस हार से भारतीय समर्थक इतने हत्थे से उखड़े कि उन्होंने अपने खिलाड़ियों के पुतले जलाए. उनके घरों पर पत्थर फेंके. इस सारे आक्रोश को ट्रिगर करने वाला ओवर, जिम्बॉब्वे के फास्ट बॉलर हेनरी ओलंगा ने फेंका था. ओलंगा 3 जुलाई, 1976 को पैदा हुए थे.
उस मैच को हर भारतीय भूलना चाहता है, लेकिन भूल नहीं पाता
सीधे मुद्दे पर आते हैं. इस वर्ल्ड कप के पहले मैच में इंडिया साउथ अफ्रीका से हार चुकी थी. दूसरा मैच सचिन तेंडुलकर नहीं खेल रहे थे. वो अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए वापसी की फ्लाइट पर थे. जिम्बॉब्वे भारत के मुकाबले कमज़ोर टीम मानी जाती थी. सो सभी को उम्मीदें थी कि इंडिया आसानी से जीत लेगी. आसानी से तो नहीं, लेकिन थोड़ी मेहनत से इंडिया जीतती नज़र आ रही थी.
सारे मैच का हाल नहीं बताते हैं. सीधे क्लाइमैक्स पर चलते हैं. 253 रन का टार्गेट चेज़ करती इंडिया के एक वक़्त पर 175 रन पर 6 विकेट गिर चुके थे. वहां से रॉबिन सिंह और नयन मोंगिया ने मैच संभाला. मोंगिया के आउट होने के बाद भी रॉबिन सिंह डटे रहे. भारत मैच जीतने की कगार पर पहुंच चुका था. सिर्फ 9 रन चाहिए थे. 12 गेंदें बची थीं. 3 विकेट हाथ में थे. कप्तान एलिस्टर कैम्पबेल ने गेंद थमाई हेनरी ओलंगा के हाथ में. यही वो घातक ओवर था.
उन छः गेंदों की कहानी, जिसने पूरे इंडिया को रुलाया
पहली गेंद पर रॉबिन सिंह ने 2 रन ले लिए.

दूसरी गेंद को ड्राइव करने के चक्कर में थे. गेंद ने एज लिया और सर्किल के अंदर कप्तान ने डाईव लगाते हुए उम्दा कैच पकड़ा. 7 रन, 10 गेंदे, 2 विकेट.
नए बल्लेबाज़ कुंबले ने अपनी पहली ही गेंद पर एक रन लेकर स्ट्राइक श्रीनाथ को दी. श्रीनाथ अच्छा खेल रहे थे. तब तक 10 गेंदों में 16 रन बना चुके थे. उनसे ज़्यादा उम्मीदें थी.

अगली गेंद पर उन्होंने 2 रन ले लिए. अब सिर्फ 4 रन चाहिए थे. 8 गेंदें बाकी थी. 2 विकेट हाथ में थे.

ओलंगा ने पांचवीं गेंद डाली. श्रीनाथ एक ही गेंद में मैच ख़त्म करने के चक्कर में थे. उन्होंने बल्ला घुमाया. गेंद उनके बैट और पैड के बीच से घुसती हुई स्टंप्स पे जा लगी. भारतीय खेमे में सन्नाटा फ़ैल गया. सबको पता था अगले बल्लेबाज़ वेंकटेश प्रसाद हैं. जिनकी बल्लेबाज़ी उतनी ही अच्छी थी, जितनी हिमेश रेशमिया की एक्टिंग.
ओलंगा अपनी आख़िरी गेंद लेकर दौड़े. महा-नर्वस प्रसाद क्रीज़ में इधर-उधर होने लगे. चहलकदमी करते हुए लेग स्टंप से ऑफ स्टंप की तरफ आए. ओलंगा ने गेंद फेंकी. वो प्रसाद के पैड से आकर टकराई. अभी ओलंगा की अपील पूरी भी नहीं हुई थी कि अंपायर ने उंगली उठा दी. भारत 3 रन से मैच हार गया था. ओलंगा जिम्बॉब्वे क्रिकेट के नए पोस्टर ब्वॉय बन गए थे.
पहला अश्वेत खिलाड़ी जो जिम्बॉब्वे के लिए खेला
हेनरी थांबा ओलंगा का जन्म 3 जुलाई 1976 को हुआ था. उनके पिता केन्या से थे. ओलंगा के पास केन्याई नागरिकता थी. जिम्बॉब्वे की तरफ से उनके खेलने में इस बात से बहुत दिक्कतें आईं. आखिर उन्हें वो नागरिकता छोड़नी पड़ी. जब 1995 में उन्होंने जिम्बॉब्वे की तरफ से डेब्यू किया, तो वो टीम के पहले अश्वेत खिलाड़ी थे. और यंगेस्ट प्लेयर भी. 1998 से लेकर 2003 तक वो जिम्बॉब्वे की गेंदबाज़ी के प्रमुख हथियार बने रहे.
जब सचिन ने लिया था बदला
हेनरी ओलंगा को भारतीय क्रिकेटप्रेमी एक और वजह से भी याद करते हैं. सचिन तेंडुलकर ने एक मैच में उनकी जम के धुनाई की थी. यूं तो सचिन ने दुनिया के सारे ही गेंदबाजों को कभी न कभी धोया है, लेकिन वो मौक़ा ख़ास हो जाता है जब सचिन ऐसा बदला लेने के लिए कर रहे हो. शारजाह में एक ट्राई-सीरीज के लीग मैच में ओलंगा ने सचिन को अपनी बाउंसर पर आउट किया. सचिन को ये बात सालती रही. फाइनल में ओलंगा फिर सचिन के सामने थे. इस बार नज़ारा बदल गया.
सचिन ने पहले ओवर से ओलंगा को निशाने पर धर लिया. उनके 6 ओवर में 50 रन कूट डाले. प्वॉइंट के ऊपर से मारा गया छक्का तो ऐसा था कि भुलाए नहीं भूलता. हर गेंदबाज़ की तरह ओलंगा को भी पता चल चुका था कि क्यों सचिन को दुनिया का सबसे उम्दा बल्लेबाज़ कहते हैं.
क्यों लिया सरकार से पंगा, जिसकी वजह से देश ही छोड़ना पड़ा
2003 वर्ल्ड कप से जस्ट पहले जिम्बॉब्वे में अराजकता चरम पर थी. वर्ल्ड कप के कुछ मैच जिम्बॉब्वे में भी होने थे. कुछ देशों ने वहां खेलने से मना कर दिया. देश में मानवाधिकारों का हनन खुलकर हो रहा था. ऐसे में हेनरी ओलोंगा ने अपने विरोध को दर्ज कराने के लिए सबसे बड़ा स्टेज चुना. वर्ल्ड कप का मैच. अपने बाज़ू पर काली पट्टी बांध कर मैदान में उतरे. इसमें उनका साथ दिया एंडी फ्लावर ने. ज़ाहिर सी बात है इससे सरकार उनसे बुरी तरह खफ़ा हो गई. उन्हें अगले मैचों के लिए ड्रॉप किया गया. यही नहीं, उनको जान से मारने की धमकियां भी मिलने लगीं. ये 1968 में मैक्सिको ओलंपिक्स के बाद दूसरा मौका था जब किसी खेल के आयोजन में इस तरह से रोष जताया जा रहा हो. उस वक्त टॉमी स्मिथ और जॉन कार्लोस ने काली पट्टियां बांधी थीं.
उनके नाम एक वॉरंट निकाला गया. उनपर राजद्रोह का आरोप था. कुछ समय के लिए उन्हें छिप जाना पड़ा. फिर देश भी छोड़ना पड़ा. आखिर उन्होंने इंग्लैंड में शरण ली.

हेनरी ओलंगा का क्रिकेटिंग करियर भले ही छोटा रहा हो, लेकिन उनका देश और पूरी दुनिया उन्हें हमेशा याद रखेगी. एक ऐसे खिलाड़ी के तौर पर, जिसने इंसाफ की आवाज़ बनने के लिए अपना करियर ही कुर्बान कर दिया.

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